ओ मेरे मनमीत
ओ मेरे मनमीत सुन ले।
विरह के ये गीत सुन ले।
प्रीत का बंधन अनोखा,
है पुरानी रीति सुन ले।। ओ मेरे।।
हृदय की गहराईयों में,
शून्य सी तन्हाइयों में।
निद्रा के हर स्वप्न में तुम,
हो मेरी परछाईयों में।।
तुमसे मेरी हो गयी है,
उम्र भर की प्रीत सुन ले।
प्रीत का बंधन अनोखा,
है पुरानी रीति सुन ले।। ओ मेरे।।
हर घड़ी बस याद तेरी,
तू दुआ, फरियाद मेरी,
जन्मों का बंधन हमारा,
तू ही है आह्लाद मेरी।।
चक्षु भी प्रस्तर हुए हैं,
पकड़ रोऊँ,भीत सुन ले।
प्रीत का बंधन अनोखा,
है पुरानी रीति सुन ले।।ओ मेरे।।
भटकती हूँ विकल होकर,
तुम नही तो अनाथ हूँ मैं।
आके प्रिय बस इतना कह दो,
हाँ ! तुम्हारे साथ हूँ मैं।।
मन के मंदिर में बसे तुम,
प्रेम है ये पुनीत सुन ले।
प्रीत का बंधन अनोखा,
है पुरानी रीति सुन ले।। ओ मेरे।
मन को मेरे मोहती हैं,
तव मधुर मुस्कान सुन ले।
दृष्टि तुमको ढूंढ़ती है,
नित्य करती ध्यान सुन ले।।
पथ निरखते नैन थकते,
समय जाए बीत सुन ले।
प्रीत का बंधन अनोखा,
है पुरानी रीति सुन ले।।ओ मेरे।।
क्यों बने निष्ठुर हो इतने,
मन मेरा बेचैन है।
क्या मुझे यूँ सताने से ही,
तुमको मिलता चैन है।।
तु ही मेरी हार है और,
तू ही मेरी जीत सुन ले।
प्रीत का बंधन अनोखा,
है पुरानी रीति सुन ले।। ओ मेरे।।
प्रथम दृष्टया देख तुझको,
जन्मों का बंधन लगा।
तब से लेकर आज तक,
कोई न मनभावन लगा।।
तुझको खोने के ही डर से,
मन हुआ भयभीत सुन ले।
प्रीत का बंधन अनोखा,
है पुरानी रीति सुन ले।। ओ मेरे।।
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@स्वरचित व मौलिक
कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’
आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश।