दोहा पंचक. . . विविध
दोहा पंचक. . . विविध
मन में अपनों के लिए, सदा रहे मृदु भाव ।
रिश्तों की चलती रहे, प्रेम सुवासित नाव ।।
बेमतलब की रार से, मिटे आपस का प्यार ।
कब सिमटे संबंध जो, मिट जाते हैं यार ।।
क्यों लड़ते हो मित्र जब, जीने के दिन चार ।
करो प्यार से आज का, कालजयी शृंगार ।।
अभिनन्दन किसका करें, किसका करें यकीन ।
जीवन में विश्वास के ,धागे बड़े महीन ।।
मुख पर तो मुस्कान है, अन्तस में है पीर ।
कह देता है दर्द सब, नैन तटों का नीर ।।
सुशील सरना /16-10-25