ग़ज़ल
वज़्न – 122 122 122 12
# अर्कान – फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल्
कभी मुझसे रूठा,कभी बात की
हमेशा ही ऐसे मुलाक़ात की
रहा ख़्वाब में उम्र भर जो मेरे
नहीं क़द्र की उसने जज़्बात की
भुलाने से भी भूल पाए कहाँ
मुहब्बत भरी रात बरसात की
तड़पती रही याद में “रागिनी”
सज़ा यह मुहब्ब्त की सौग़ात की
गिरह—-
बड़ा बेख़बर है बताता नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
डॉक्टर रागिनी स्वर्णकार शर्मा,इंदौर