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16 Oct 2025 · 5 min read

लालच

कल रात से नानक बुखार में तप रहा था। पिछले कई दिनों से दीपावली के कारण उसके द्वारा किये जाने वाले काम में तेजी आ गयी थी। वह भी अधिकाधिक रूपया कमाने के चक्कर में दिन -रात बिना नागा किये दिन -रात पुताई का काम पर काम किये जा रहा था।
अंत में बेचारा एकहरा शरीर कितना बोझ संभालता और कल गिर ही पड़ा। काम की भाग दौड़ में वह न ठीक से भोजन बना पाता। कभी किसी तरह बन भी गया तो खाने की फुर्सत नहीं। भोजन नहीं बन पाने के स्थिति में कभी भुजा खा लिया तो कभी सत्तू। हाँ बस गुटका ही उसका सहारा था, जिसे मुंह में वह दबाये बस काम और काम किये जा रहा था।
” डाक्टर साहब ऐसा दवाई दीजिये कि मै जल्दी ठीक हो जाऊँ। दो -दो ठीक लिया हूँ और समय बहुत कम है ” नानक हाँफते हुए अपने मोहल्ले के डाक्टर से बोला।
” अरे भाई सेहत से मजाक मत करो। हमें लग रहा तुम्हे टायफोइड हो गया है , पहले ई जाँच कराओ। तब तक ई दवा खाओ और आराम करो ” डाक्टर ने उसे जाँच के लिए पर्ची थमाते हुए कहा।
” नहीं डाक्टर साहब कुछ नहीं हुआ है बस थोड़ा बुखार है , ठीक हो जायेगा। ” कहते हुए वह दवा लेकर बाहर निकल गया।
उम्मीद के अनुरूप उसने जाँच करने की कोई आवश्यकता नहीं समझी ,दवा खाया , थोड़ा आराम लगा तो फिर काम पर चला गया। इस तरह वह दवा खाता रहा और काम करता रहा।
कल उसके घर से फोन भी आया था। पत्नी पूछी कि – “कब आ रहे हो ?, बच्चे सब पूछ रहे है। बगल वाले डब्बू घर आ गये है , खूब मिठाई व पटाखे लेकर आये है। उनके बच्चे हमारे बच्चों को दिखा कर खूब चिढ़ा रहे है। जान ही रहे हो बच्चे है, आखिर उनकी भी इच्छा तो होती ही है, कितना सब्र रखेंगे वे सब ? इसीलिए बार -बार पूछ रहे है। परसो ही दीपावली है। अब ज्यादा काम मत करो , अपने सेहत का भी ख्याल करो और अब घर आ जाओ। सब मिलकर त्यौहार ख़ुशी -ख़ुशी मनायेंगे। घर -आँगन सब हमने चूना कर डाला है , अब बस तुम्हारे आने के देर है। ” पत्नी विमला ने अनुनय की मुद्रा में कहा था।
” कुछ काम और ले रखा है , बस उसे पूरा करके आता हूँ , तब तक तुम घर , बच्चों व अम्मा का ख्याल रखो।” नानक ने फोन काटते हुए कहा था। वस्तुतः उसे काम पर जाने की जल्दी हो रही थी।
वह लगभग नित्य ही सोचता कि बस आज भर वह काम करके घर निकल जाऊंगा। पर काम पर काम मिलता जा रहा था। कुछ और पैसे कमा लेने की लालच में वह मना नहीं कर पाता और काम ले लेता। स्थिति यह हो गयी घर से फोन आता रहा और वह ठीक दीपावली के एक दिन पूर्व तक दवा खा -खा कर काम करता रहा था। अंत में तंग होकर आज सुबह उसने निर्णय कर लिया था कि कुछ भी हो जाय , जैसे भी हो आज शाम को वह घर के लिए निकल लेगा। अब घर वालों को वह प्रतीक्षा नहीं करवायेगा। रोज -रोज त्यौहार तो आता नहीं है। ऐसा सोच कर उसने दोपहर तक काम करने के बाद वह बाजार की ओर घर के लिए खरीद दारी करने निकल पड़ा।
लगातार काम करने से वह एकदम थक चुका था। ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। एक -एक कर कुछ सामान ख़रीदा तभी पटाखे की दुकान के पास वह अचानक गिर कर अचेत हो गया। होश आने पर अपने को वह एक अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा पाया। पास में उसकी पत्नी और बच्चे बैठे थे , जिन्हे देखकर वह घबरा गया।
” अरे तुम सब यहाँ कैसे ? , क्या हुआ ? ” घबरा कर वह पूछ बैठा।
पता चला कि जब वह बाजार में गिरा था , तब एक पुलिस वाले ने उसे वहां से उठाकर पास के सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा कर उसके जेब से मिले पते पर फोन कर दिया था। जिस सुनकर उसकी पत्नी बच्चों के साथ त्यौहार की सब तैयारी छोड़ कर भागी चली आयी थी ।
” आप शांत रहो , आराम करो। ” पत्नी ने अपनी तर्जनी को अपने दोनों बंद ओंठ पर रखते हुए ईशारा किया। डाक्टर ने आपको ज्यादा बातचीत करने को मना किया है। बस आराम करने को कहा है।
” अरे मुझे क्या हो गया ? बस थोड़ा बुखार ही तो था। इसके लिए इतना परेशान होने की जरूरत क्या ? ” चलो उठो सबलोग घर चला जाय। सब मिलकर दीपावली मनायेंगे। तुमने घर पर अम्मा को अकेले कैसे छोड़ दिया ?” कहते हुए नानक ने स्वयं से उठने का प्रयास किया , पर कमजोरी के कारण असफल रहा।
” दीपावली बीते हुए दो दिन हो गया। आपको पता भी है , आप परेशान मत होइये। अम्मा को चाचा जी के यहाँ सहेज कर आये है। आपको कल शाम में ही होश आया है। डाक्टर कुछ जाँच करवा रहे उसके बाद ही हमें छोड़ेगे। ” उसकी पत्नी ने उसे पुनः शांत रहने का ईशारा करते हुए कहा ।
” बाप रे ! यह क्या हो गया मुझे ? बहुत कमजोरी लग रही है। अपने से उठ भी नहीं पा रहा मै। हे भगवन ! ” कहते हुए नानक रुआँसा हो चला।
” सब ठीक हो जायेगा , आप चिंता मत करिये। डाक्टर कह रहे थे कि आपकी किडनी पर बहुत लोड पड़ा है। धीरे -धीरे आराम होगा। ” पत्नी ने उससे कुछ छिपाते हुए कहा। पर नानक भाप गया कि कुछ तो गड़बड़ है। उसने आँखे बंद की और सोने का उपक्रम करते हुए भगवान से मन ही मन मना रहा था कि हे प्रभु ! सब ठीक हो जाय। वरना क्या होगा मेरे परिवार का।
थोड़ी देर में पत्नी विमला पतली खिचड़ी लेकर आयी जो अस्पताल से ही मिला था और उसे अपने हाथों से खिलाते हुए उसके साथ पुरानी सुन्दर यादें ताजा करते हुए उसे खुश रखने का प्रयास करने लगी। तभी अचानक बीच में नानक बोल पड़ा – ” अच्छा ये बताओ जो पैसा मेरे ईलाज में लग रहा उसे कहाँ से लायी तुम ? ”
” आपकी जेब से कुछ मिल गया था , कुछ घर से चाचाजी से मांग कर ले आयी थी आते समय ही किसी अनहोनी की आशंका वश । वही सब चल रहा। ”
नानक सोचने लगा कि इतनी भागदौड़ की परिवार के लिए , पर अब सब व्यर्थ हो गया। काश ! थोड़ा अपने को समझा लेता , मना लेता तो आज यह स्थिति तो न बनती कम से कम। तभी डाक्टर ने वार्ड में प्रवेश किया –
” भाई रिपोर्ट आ गयी , इनकी एक किडनी तो एकदम खराब हो गयी दूसरी भी ख़राब हो रही है। इन्हे हम डिस्चार्ज कर रहे है आज दूसरे पहर । जल्दी से इन्हे किडनी के किसी बड़े अस्पताल में ले जाकर दिखाओं , वरना काम और बढ़ जायेगा ”
” लेकिन डाक्टर साहब ये अचानक कैसे हो गया मुझे ?” घबराते हुए नानक बोला, उसका स्वर काँपने लगा था।
” खूब अपने मन से दर्दनिवारक दवाइयां शायद खायी होगी आपने , अभी तो यही कारण समझ में आ रहा। अब आप जब बड़े सेंटर जाओगे तो वे कन्फर्म बतायेगे आपको। हमारे यहाँ इतनी सुविधा नहीं है भाई। ” कहते हुए डाक्टर दूसरे मरीज को देखने लगा।
नानक किंकर्तव्यविमूढ़ ,स्तब्ध विमला का हाथ थामे शून्य में निहारने लगा। हे भगवान ! अब कैसे क्या होगा ? और वह निस्तेज होकर एक तरफ लुढ़क गया।

निर्मेष

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