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16 Oct 2025 · 1 min read

मुहब्बत का यारों , समाँ बाँधते हैं

ग़ज़ल
1,,,
मुहब्बत का यारों , समाँ बाँधते हैं ,
सफ़र ज़िंदगी का , हँसी मांगते हैं ।
2,,,
मुहब्बत,अदावत के दरजात क्या हों
खयालों में इनको , ही बस सोचते हैं ।
3,,,
हमें ज़ख्म देकर ,वो चलने लगे जब ,
बड़ी तेज़ नज़रों , से हम तौलते हैं ।
4,,,
वफ़ा है , जफ़ा है , यही देख लेते ,
तुम्हारे ही दिल को, चलो आँकते हैं ।
5,,,
न अब कुछ है कहना, सफाई में अपनी ,
भला क्या बुरा क्या वो सब जानते हैं ।
6,,,
हुआ इश्क़ ऐसा , न ऐसा हुआ था ,
ज़िकर हो तुम्हारा, तो लब काँपते हैं ।
7,,,
मुकद्दर सिकंदर , बना आज मेरा ,
खुशी से सभी अब, क़दम चूमते हैं ।
8,,
ये पैमानये “नील” , भरने लगा अब ,
चलो , चल के हम भी , ज़रा डूबते हैं ।

✍️नीलोफर ख़ान नील रूहानी

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