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16 Oct 2025 · 2 min read

मावा और रसगुल्ला

व्यंग्य

मावा और रसगुल्ला

मावे को देखो। कंचन काया। बुलडोजर आया। ले गया पकड़ कर। दबा दिया जमीन में। बात कुछ जमी नहीं। मावे का दाह संस्कार क्यों नहीं किया? अवसर तो देखते। मावा क्यों बना? किसके लिए बना? अवसर क्या है?
अपनी देह पर रसगुल्ला भी बहुत इतराता है। वो भी पकड़ा गया। दोनों को नकली साबित किया गया। दोनों क्या सफाई देते। रसगुल्ला स्पंज था। टूट गया। बिखर गया। उसका रस आंसुओं में ढल गया।
आजकल एक टीम वार्षिकोत्सव मना रही है। यह हर साल इसी अवसर पर आती है। यह सीजन मच्छरों और डेंगू का होता है। चुनाव भी इसी समय होते हैं। गुलाबी ठंड शुरू हो जाती है। सब अपने दीप में उलझे रहते हैं। जलाएं तो कैसे जलाएं? घी से जलाएं? या तेल से जलाएं?
मावे ने तय किया, वह अब नहीं बनेगा। रसगुल्ला भी हताश था। दोनों ने हड़ताल कर दी। हमारे भी बुनियादी हक हैं। हम खाने के लिए बने हैं। जमीन में दबने के लिए नहीं। अपने देश में अजूबे की कमी नहीं। टीम फट से सूंघ लेती है, कहां मावा नकली है? कहां रसगुल्ले घटिया? कायदे में, दिवाली आते ही मावा और रसगुल्ले सही जगह पहुंचा देना चाहिए। साहब खा कर देख लें। कोई कमी हो तो बता दें। व्यापारी है। दुकान चलानी है। वह सब इंतजाम करा देगा।
कुछ विभाग पारलौकिक हैं। बिजली कनेक्शन दिवाली पर कटते हैं। अवैध निर्माण दिवाली पर ध्वस्त होते हैं। दवाइयों के नमूने लेने का यह उचित अवसर है। खायेंगे। बीमार पड़ेंगे। दवाई की जरूरत पड़ेगी। जब रोशनी चाहोगे। बिजली कटेगी। तभी दीपक जलेंगे। दिवाली होगी। इसी बात के पैसे हैं।
अमावस्या इनकी डायरी में नोट होती है। हर अमावस्या पर ये नहीं निकलते। त्यौहार आए नहीं..इनका मिशन शुरू। ये पटा कर खाते हैं। यानी पटाखे पकड़ते हैं। ये मियां, हरफन मौला हैं। इनकी उंगलियां मावे में धंसी हुई हैं। अपने हलके के ये होनहार हैं। मावे या रसगुल्ले की क्या औकात..जो इनसे भिड़ जाए। दुनिया कमजोर को दबाती है। आपकी सेहत न बिगड़े, इसका हिसाब रखती है।

सूर्यकांत
16.10.2025

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