जगमग-जगमग दीप जले,
जगमग-जगमग दीप जले,
चहुँ ओर आपके हो प्रकाश।
तन के संग मन भी पुलकित हो,
श्री मुख पर फैले मंद हास।।
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अलंकार आभूषण से सजी,
नीलाभ व स्वर्णिम साड़ी में।
झिलमिल नक्षत्र व सितारों सी
हों पुष्प तेरी फुलवारी में।।
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सुख-शांति, उमंग-उल्लास लिए,
तुम दिव्य रूप हो तनीषा सी।
हो चंद्रमुखी सी दीप्तिमान,
तुम विदुषी मेरी मनीषा सी।।
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स्वस्तिक, श्रेय-प्रेय, समता सी
जय हो तेरी, विजयकामिनी।
स्नेह, दया, सुख, शांति-दायिका,
जग जगमग कर दीप यामिनी।।
@स्वरचित व मौलिक
कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’
आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश।