नदी नौका विहार पहाड़ पर्यटन की चीज है
नदी अब
हमारे गाँव की कहानी नहीं रही,
वह अब पोस्टर पर मुस्कुराती है
नीले आसमान के नीचे,
एक साफ़-सुथरी,
चमकीली परछाईं बनकर।
पहाड़ अब
देवता नहीं,
रेसॉर्ट के बैकग्राउंड हैं।
जहाँ हवा बोतल में बंद होकर बिकती है,
और बादल
ड्रोन से कैप्चर किए जाते हैं।
नौका अब जीवन नहीं ढोती,
बस ‘सेल्फ़ी पॉइंट’ है।
उस पर बैठे पर्यटक
मछुआरे के जाल में
‘नेटवर्क’ ढूँढते हैं।
कभी यह नदी
भूख, प्यास, श्रम, और प्रार्थना की लकीर थी।
अब यह सिर्फ़
एक ‘पैकेज’ है
तीन दिन, दो रात,
ब्रेकफ़ास्ट इन्क्लूडेड।
पहाड़ की छाती पर
सड़कें इस तरह चढ़ी हैं
जैसे सभ्यता ने प्रकृति को
काँधे पर बिठा लिया हो,
तस्वीर के लिए।
और हम सोचते हैं
क्या सचमुच यह विकास है?
या बस एक
संवेदनहीन ‘ट्रिप’,
जहाँ लौट आने के बाद
कोई याद नहीं रखता
कि वहाँ भी लोग रहते थे,
जिनके लिए
नदी, नौका, और पहाड़
जीवन थे,
न कि पर्यटन की चीज़।
© अमन कुमार होली