यादों की अंजुमन से , पुकारा न कीजिए
यादों की अंजुमन से , पुकारा न कीजिए,
बेरंग ज़िन्दगी का , सहारा न कीजिए।
उरियाँ चमन हुआ है जो, फूलों से बेख़बर,
पत्तों से डालियों से , वो आरा न कीजिए ।
बेवजह उठ रहे हैं , जो इलज़ाम ज़िंदगी ,
अब आप भी किसी को , निहारा न कीजिए ।
ख़ालिस मुहब्बतों का, हुनर बे- नियाज़ है ,
अपनों से फिर कभी भी , किनारा न कीजिए ।
सारी ही कायनात , मिली आप को सनम ,
अब तंग दिल से आप , गुज़ारा न कीजिए ।
वो बेनज़ीर यार था , जिस पर हुआ करम ,
अश्कों से दिल के दाग़ , सँवारा न कीजिए ।
इक आरज़ू में दिल को ही क़ुर्बान कर चला ,
आज़ाद आशना को , इशारा न कीजिए ।
बेजान जिस्म यार का ,अब रूह क्या करूँ,
बेदर्द नील दिल ये , हमारा न कीजिए ।
✍️ नीलोफर ख़ान नील रूहानी