एक प्याला हाला
आज न पूछो
कि जीवन की परिभाषा क्या है,
न गणित लगाओ
इस क्षणभंगुर साँस का।
ले आओ, बस ले आओ
प्याला,
जो अब तक था खाली,
जिसकी प्यास थी गहरी।
हाँ, वही प्याला
जिसमें डूबती रही है
युगों-युगों की निराशा,
और तैरता रहा है
एक उन्मादी उल्लास।
यह मदिरा नहीं है,
यह मेरे हृदय का तीव्र भावावेग है,
जो छलका है
जीवन की हर निराशा पर।
बाहर खड़े लोग,
वे जो ‘धर्म’ और ‘नीति’ की
बाड़ लगाते हैं,
उन्हें पता नहीं
इस मधुशाला के द्वार पर
सब ऊँच-नीच, सब पाप-पुण्य
धुल जाते हैं।
यहाँ कोई नहीं पूछता
कि तुम कौन हो, कहाँ से आए हो?
बस एक ही शर्त है,
एक ही ईमानदार विधान
पी सको तो पी लो यह क्षण,
जी सको तो जी लो यह मस्ती।
वो कहते हैं, नशा क्षणिक है।
हाँ, मैं मानता हूँ, नशा क्षणिक है,
पर इस जग की सच्चाई
तो उस नशे से भी छोटी है।
जब सब कुछ टूटना ही है,
जब कल का स्वप्न भी
आज की राख बन जाना है,
तो क्यों न
इस मधुर मदिरावाद में
डूबकर,
जीवन की हर बाधा को
एक मीठा सा गीत बना लूँ!
ओ साक़ी!
तेरी आँखों का प्रेम भी
इसी हाला से बना है।
भर दे प्याला,
कि आज मैं भूलना चाहता हूँ
उस सब को,
जो कभी पाया नहीं,
और उस सब को,
जो मुझसे छिन जाने को है।
बस, यह स्वच्छंद प्याला,
और मैं!
यही सत्य है,
यही मुक्ति है,
यही मेरा मधुमय जीवन-दर्शन है।
© अमन कुमार होली