खाली पेट की गवाही..."
📍खाली पेट की गवाही…”
कभी बैठना अकेले,
भूखे, खाली पेट….
जहाँ कोई आवाज़ न बचे,
जहाँ दीवारें भी तुमसे बात न करें।
वहीं से शुरू होती है असली पहचान।
तब तुम्हें महसूस होगा
अब तक जो पाया, वह कितना छोटा है,
और जो पाना बाकी है,
वह कितना ज़रूरी।
भरा हुआ पेट
दिमाग को सुला देता है,
सोच को आराम की चादर में लपेट देता है।
भूख ही है,
जो तुम्हें जगाए रखती है,
जो तुम्हें काटती है भीतर से
और कहती है,,
अब उठ,
अभी सफ़र अधूरा है।
जब कोई पूछने वाला न हो,
जब कोई हाथ तुम्हारे लिए आगे न बढ़े,
जब तुम्हारे हिस्से का एक दाना भी
तुम्हें न मिले,
तभी समझ आता है
दुनिया असली में कैसी है।
याद रखना….
भूख सिर्फ़ पेट की नहीं होती।
भूख होती है इज़्ज़त की,
भूख होती है अपनापन की,
भूख होती है पहचान की।
खाली थाली,
तुम्हें हर रोज़ सिखाती है कि
जीना सिर्फ़ सांस लेना नहीं,
जीना है लड़ना,
अपने हिस्से की रोटी के लिए,
अपने हिस्से की जगह के लिए।
और शायद तभी
तुम्हें समझ आएगा कि
इंसान होना
सिर्फ़ अपने लिए पाना नहीं,
किसी और की भूख मिटाना भी है।
भूख को मत कोसना,
भूख को हथियार बना लेना
क्योंकि वही भूख
तुम्हें मुकाम तक ले जाएगी।
कभी बैठना अकेले,
भूखे, खाली पेट..
और देखना,
तुम्हारी रूह तुम्हें पुकारेगी
उठो,,,!
तुम्हें अभी बहुत कुछ हासिल करना है।