नैतिक साहस-परिवर्तन का आधार
न तोप, न तलवार,
न बारूदी आवाज़,
केवल एक धधकता सत्य
अकेले खड़ा, निःशस्त्र।
उसके पाँव के नीचे
अन्याय की सूखी पत्तियाँ
करारी, पर क्षणभंगुर।
आँखों में एक आग
जो अँधेरे को खा जाती है
बिना धुँआ किए,
बिना शोर मचाए।
वह चलता है
अनजान राहों पर,
केवल अपने भीतर की
एक छोटी-सी चिंगारी से।
उसकी राह में
कोई कोलाहल नहीं,
केवल एक खामोशी
जो आने वाले युग की
पहेली बुनती है।
वह अकेला है,
पर वह एक है,
और उसके होने भर से
क़िस्मत का नक्शा बदल जाता है।
क्योंकि उसके पास है
एक अजेय सेना
जिसका नाम है
नैतिक साहस।