ग़ज़ल 221 2121 1221 212
ग़ज़ल 221 2121 1221 212
दिल की निगाहों को तेरा दीदार चाहिए,
बस एक बार ही नहीं सौ बार चाहिए।
गर चांदनी को चांद से मतलब नहीं सनम,
तो चांद को सितारा भी खुद्दार चाहिए।
हो मनमुटाव भाइयों में कितना भी अपने घर,
आंगन में घर के कोई न दीवार चाहिए।
वे मुल्क की तरक्की की सोचे न सोचे पर
इस मुल्क को वज़ीर न गद्दार चाहिए।
ये क़ौम बेदिली के ही संस्कारों से भरी,
डरपोक क़ौम को सही संस्कार चाहिए।
हमको अथाह पैसा न प्राचीर चाहिए,
ता उम्र हमको अपनों का बस प्यार चाहिए।
मुर्दा-परस्त शह्र को फिर ज़िंदा करने को,
कोई अदब निगार या फनकार चाहिए।
लड़ कर किनारों से कहाँ पहचान मिलती है,
दानी को अपने सामने मंझधार चाहिए।
( डॉ संजय दानी दुर्ग- सर्वाधिकार सुरक्षित )