Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
11 Oct 2025 · 1 min read

आईना भी झिझकता है

वे आईने में नहीं,
आईने के पार रहती हैं।
जहाँ लिंग का कोई धर्म नहीं,
केवल अस्तित्व की पुकार होती है।

उनकी हँसी
सड़क के कोनों पर गूँजती नहीं,
अक्सर कुचली जाती है
किसी “असहज” निगाह के नीचे।

कभी तालियाँ बजाती हैं,
तो लोग कहते हैं
“मज़ाक मत बना!”
पर क्या किसी ने सुना है
उन ताली की लय में छिपी
सदियों की सिसकियाँ?

उनके पास न कोई मंदिर है,
न कोई बारात में जगह।
पर जब वर-वधू की गाड़ी निकलती है,
तो वही आशीर्वाद देती हैं
जिसे समाज ने अपवित्र कहा।

वे चलती हैं
शहर के फुटपाथों पर,
जहाँ पहचान रेंगती है,
सम्मान रुक जाता है,
और शरीर
सवाल बन जाता है।

कभी किसी ने पूछा,
क्या “तीसरा लिंग” भी
पहले दो की तरह
प्रेम कर सकता है?
वे मुस्कुरा देती हैं
एक ऐसी मुस्कान
जिसमें
पूरा संविधान थक जाता है।

उनके आँचल में
रंग हैं— इंद्रधनुष से भी गहरे,
उनकी आँखों में
इतिहास के अँधेरे गलियारे।

वे न देवी हैं, न पाप
बस एक जीवित कविता हैं,
जिसे हम बार-बार
अधूरा छोड़ देते हैं।

© अमन कुमार होली

Loading...