बाल कवि
प्यारी प्यारी मूरत हूँ
माँ पिता का सूरत हूँ
आंगन में फूल खिला
चंचल मंगल सीख मेरी
प्यार पाता टोकरी भर
विद्या पाता हँस हँस कर
खेल खेल में सीखता हूँ
कवि बनना मैं चाहता हूँ
जोड़ तोड़ तुक शब्द सजा
दुख सुख अपना सपना हो
सरल सहज समझ में आबे
तूतली बानी से तूक लगाता
झूम झूम नाच गाना गाता
सामने वाले को भी नचाता
छोटे बाल की गीत बनाता
सीख भरी हो ज्ञान भरी हो
शब्दों का खोज खजाना हो
मन शब्दों का माला बनाता
भारी भरकम मोटी ना हों
छोटों की हो छोटी कहानी
लगातार गा गाकर रोज हम
लघु गीत बना कर सुनाता हूँ
बाल कवि कहलाता हूँ
जन मानस में छा जाता हूँ ।
*******