अगर कभी हो जाये ऐसा
अगर कभी हो जाये ऐसा,
कि मैं हो जाऊँ घायल,
किसी वाहन की टक्कर से,
अचेतावस्था में पड़ा होऊँ,
किसी सड़क पर,
और जुटी हो भीड़ काफी,
मेरे इस अचेत शरीर के आस पास,
लेकिन नहीं हो वहाँ पर कोई भी,
मुझको पहचानने वाला,
तब क्या तुम कह सकोगी,
कि मैं जानती हूँ इनको,
और कर सकोगी तुम साहस,
अपने मन के सारे शक मिटाकर,
मुझको अपने हाथों से उठाकर,
किसी वाहन में बैठाकर,
अस्पताल पहुंचाने का।
कर सकोगी तुम वहाँ पर,
मेरी देखभाल सच्चे मन से,
अपने लोगों की बातें,
अनसुनी कर हवा में उड़ाकर,
रुक पावोगी तुम वहाँ मेरे पास,
हालांकि हम दोनों नहीं जानते,
एक दूसरे का नाम तक,
सिर्फ देखा है हमने कहीं बार,
एक दूसरे को इस शहर में,
और कभी एक जगह इकट्ठे भी हुए,
हम दोनों कई दिनों तक,
हाँ, मिली है हम दोनों की नजरें,
कई बार कुछ सवाल लिये,
मगर जवाब ना तुमने दिया,
और ना ही मैं उत्तर दे सका,
बस नजर मिलाकर ही,
हम गुजरते रहे हैं,
एक दूसरे के करीब से।
मेरे इस सवाल को तुम,
इस तरहां मत समझना,
कि मैं तुमको जबरदस्ती,
अपने करीब लाना चाहता हूँ,
और अपना प्यार जताना चाहता हूँ,
यह तो अपनी मर्जी है,
मैं कैसे तुम पर दबाव डाल सकता हूँ,
यह तो एक विचार आया था मन में,
इसलिए यह कह रहा हूँ तुमसे।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)