शातिर लोगों को सामाजिक होना पड़ता है
ग़ज़ल
शातिर लोगों को सामाजिक होना पड़ता है
आग लगानी हो तो आना-जाना पड़ता है
बुरे शख़्स को अच्छी छवि बनानी पड़ती है
ज़हर की खेती को भी अमृत बोना पड़ता है
आंसू और मोहब्बत का कुछ ऐसा नाम हुआ
आग लगाने वाले को भी रोना पड़ता है
भीड़ से जब तुम डरते हो तो बहक भी जाते हो
उस रस्ते पर चल पड़ते हो जो ना पड़ता है
क़ातिल बोला भैया ये कैसी दुश्वारी है
क़त्ल करो सो करो हाथ भी धोना पड़ता है
-संजय ग्रोवर
-संजय ग्रोवर
( तस्वीर: संजय ग्रोवर )