लो जी वो सामान मेरे दर पर बिकने आ गया
लो जी वो सामान मेरे दर पर बिकने आ गया
जिसे मैं लेने गाँव जाया करती थी।
एक बहाना था गाँव जाने का
एक बहाना था उनसे मिलकर आने का
एक बहाना था कुछ यादों को सांझा करने का
एक बहाना था उनके पास चंद घंटे बिताने का
एक बहाना था उनके ग़मों को उनके चेहरों पर पढ़ने का
एक बहाना था एक माँ से मिलने का
एक बहाना था चेहरे पर पड़ती झुर्रियों को देखने का एक बहाना था अपनी बातों से उन्हें मुस्कुराते हुए देखने का
एक बहाना था उस गाँव जाने का
जहाँ मैने बचपन गुजारा
सामान क्या आया दर पर बिकने मेरे
सारे बहाने ले गया समेटकर साथ अपने।।
हरमिंदर कौर, अमरोहा