ज़िन्दगी से आज यारी क्या पता.
ज़िन्दगी से आज यारी क्या पता.
कल खड़ी हो इक बीमारी क्या पता.
साथ मेरा छोड़कर जो जा चुके,
हो गया है दर्द भारी क्या पता.
खून के रिश्ते बदलते जा रहे,
बदले कब नीयत तुम्हारी क्या पता.
पेड़ पौधों पर खड़ा संकट बड़ा,
कब चले मानव की आरी क्या पता.
सभ्यता को भूल बैठे आज हम,
और भूले दुनियादारी क्या पता.
“सर्वप्रिय” सच्चे पथों के देवता,
हों युधिष्ठिर से जुआरी क्या पता.
– राजेश पाली”सर्वप्रिय”