संस्मरण - पता नहीं
वर्ष २००७ की बात है। मैं ४ कर्मियों के अनुभाग का इंचार्ज था जिनकी वार्षिक रिपोर्ट की जिम्मेदारी मेरी थी।दो कनिष्ठ कर्मी सीधे प्रभावित नहीं थे किंतु दोनों वरिष्ठ प्रत्यक्ष रूप से। उच्च अधिकारी से मेरे बिल्कुल सामान्य संबंध थे। मैंने पूरे विवेक व स्वच्छ भाव से निर्णय लिया कि किसे एक व दो नंबर पर रखना है, जिस में अधिकारी को कष्ट नहीं था, फिर कहीं से उन्हें शिफारिश मिली और मुझे क्रम बदलने का संदेश दिया जो मैंने अस्वीकार कर दिया। बात आग की तरह फैल गई, पर मेरे प्रति दक्षिण भारतीय अधिकारी का रुख सामान्य ही दिखता था। लेकिन अगले माह मेरी वार्षिक रिपोर्ट मेरे वर्ग के लोगों में औसत से निम्न दी गई। मेरे अधिकारी ने स्वयं ऐसा किया या सिफारिश करने वाले के दबाव में, पता नहीं। तुरंत ही, बीस वर्ष के बाद सेवा में रहने/न रहने का विकल्प चुनने का समय निकट था और धूमिल भविष्य की संभावना में, दूसरे विकल्प का तीर कमान से निकल गया।