दीपक-बाती के जैसे हम, दोनों मिल- जुलकर जलते थे
दीपक-बाती के जैसे ही, हम दोनों मिलकर जलते थे
राहें कितनी भी मुश्किल थीं,कदम मिलाकर हम चलते थे
चली समय की ऐसी आँधी, बिखर गया सारा अपनापन
नहीं दिखाई कुछ भी देता ,अब आँखों में है धुँधलापन
एक समय था जब आँखों में, जीवन के सपने पलते थे
राहें कितनी भी मुश्किल थीं,कदम मिलाकर हम चलते थे
तुम बिन जीवन का हर इक पल, लगता जैसे एक समर है
कैसे तुमसे मिलने आऊँ, लोकलाज का भी तो डर है
एक समय था बिना तुम्हारे ,कुछ पल भी कितना खलते थे
राहें कितनी भी मुश्किल हों,कदम मिलाकर हम चलते थे
दूर कहीं जब आहट होती,नज़र द्वार पर टिक जाती है
कितनी भी उम्मीद सँजोलें, हाथ निराशा ही आती है
एक समय था जब हम चाहें, तब सूरज- चंदा ढलते थे
राहें कितनी भी मुश्किल हों,कदम मिलाकर हम चलते थे
डॉ. अर्चना गुप्ता
01.10.2025