श्री कृष्ण सा व्यक्तित्व
व्यक्तित्व विकास कुछ ऐसा हो,
महारथी कृष्ण के जैसा हो
उन्मुक्त हो मन, न मरण का भय, काल को ही तुम मृत् कर दो.
जो पुत्र हो तुम तो यशोदा मां की ममता को संतृप्त कर दो|
कूटनीतिक हो तो चलो दांव, भीष्म शत्रु को दुर्बल कर दो,
बिन युद्ध पराजित वैरी हो, कर्ण वीर को तुम निर्बल कर दो|
जो बनो भूप, जो नेता हो, कंस रूपी दुष्टों का नाश करो,
न जनमानस हो दीन हीन, हर्षोल्लासित हो, उद्धार करो|
जो बनो मित्र तो ऐसा हो, सुदामा निर्धन का संताप हरो,
बस रण में जय हो मित्रवर की, न लाभ हानी का विचार करो|
जो उठाओ अस्त्र तो काष्ठ चक्र, सम्मुख, ब्रम्हास्त्र का बल भी फीका हो,
जो बनो कवि, जो लेखक हो, रच दो महाग्रंथ, छंद छंद गीता हो|
जो करो प्रेम तो कण कण को राधा सा तुम स्निग्ध कर दो,
16 कलाओं में ज्ञान निपुण, व्यक्तित्व श्री कृष्ण सरीखा हो |
– विवेक शेखर गौड़ ( @GhumakkadRachnakaar)