खुशामद का हुनर रक्खे हुए हैं
खुशामद का हुनर रक्खे हुए हैं
वो किस्मत अर्श पर रक्खे हुए हैं
सितम की इंतहा भी देखना है
अभी नेजे पे सर रक्खे हुए हैं
सफ़र में जिम्मेदारी चल रही है
दिलों जाँ ज़हन घर रक्खे हुए हैं
सितम का सिलसिला कब तक चलेगा
हमी क्यों दाँव पर रक्खे हुए हैं
कभी झांका नहीं अपना गिरेबाँ
वो दुनिया की खबर रक्खे हुए हैं
अंधेरे साथ रहते हैं हमेशा
उजाले बांटकर रक्खे हुए हैं
सुनी जाती है हर इक बात उनकी
जो लहजे में असर रक्खे हुए हैं