भेद पराया कर रहा, अपना देता दंश।
भेद पराया कर रहा, अपना देता दंश।
जीवन इसके मध्य में, काटे अपना अंश।।
भाव बदलते रंग है, अलग-अलग व्यवहार।
इन तर्कों के बीच में, चलता है संसार।।
सुख की महिमा दु:ख से, पुण्य जने सह पाप।
समय बँधा कुछ है यहाँ, कुछ चुनते हैं आप।।
दुनिया रंगों से भरी, अलग-अलग है अंग।
कर्म भावना समय से, बदले सबका रंग।।
दुविधा में रहना नहीं, “पाठक” कहता आज।
दुनिया ऐसे ही चले, करता जा निज काज।।
:- राम किशोर पाठक (शिक्षक/कवि)