हम रोबोट है ।
हम रोबोट है , हमे त्यौहारो, रीति रिवाजों से अब घिन्न आती है ,
बड़ा सा चेहरा बनाने का मन करता है ,
अब हम पर जिम्मेदारीयो औऱ दिखावे के चादर को जबरदस्ती ओढाह दिया गया है ,
अब हम अपने जीवन को नही जी रहे हैं
अब हम समाज के सच मे पुतले बन गए हैं ।
अब हम सच मे पानी हो गए है , सच मे हम पसीज गए हैं ।
सच मे अब हम पुरुष ,पुरूष नही दया की भीख मांगने पर उतारू है ।