दोहा सप्तक. . . . . दशहरा
दोहा सप्तक. . . . . दशहरा
निन्दा होती झूठ की, सच को मिलता मान ।
टूट गया सच बाण से , रावण का अभिमान ।।
रावण के तेवर जले, मिटा साथ अभिमान ।
दंभ दशानन सा मगर , हरा रखे इंसान ।।
हर दम्भी का एक दिन , सूरज होता अस्त ।
रावण जैसा सूरमा, होते देखा पस्त । ।
बाण चला कर सत्य का, किया पाप का नाश।
जयकारों से राम के , गूँज उठा आकाश ।।
सदियों से लंकेश का, जलता दम्भ प्रतीक ।
मिटी नहीं पर आज तक, बैर भाव की लीक।।
कर सीता का अपहरण , इठलाया लंकेश ।
मिटा दिया फिर राम ने, लंकापति अवधेश ।।
कहते हैं रावण बड़ा, जग में था विद्वान ।
पर नारी के मोह ने, छीनी उसकी जान ।।
सुशील सरना / 2-10-25