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2 Oct 2025 · 1 min read

दोहा सप्तक. . . . . दशहरा

दोहा सप्तक. . . . . दशहरा

निन्दा होती झूठ की, सच को मिलता मान ।
टूट गया सच बाण से , रावण का अभिमान ।।

रावण के तेवर जले, मिटा साथ अभिमान ।
दंभ दशानन सा मगर , हरा रखे इंसान ।।

हर दम्भी का एक दिन , सूरज होता अस्त ।
रावण जैसा सूरमा, होते देखा पस्त । ।

बाण चला कर सत्य का, किया पाप का नाश।
जयकारों से राम के , गूँज उठा आकाश ।।

सदियों से लंकेश का, जलता दम्भ प्रतीक ।
मिटी नहीं पर आज तक, बैर भाव की लीक।।

कर सीता का अपहरण , इठलाया लंकेश ।
मिटा दिया फिर राम ने, लंकापति अवधेश ।।

कहते हैं रावण बड़ा, जग में था विद्वान ।
पर नारी के मोह ने, छीनी उसकी जान ।।

सुशील सरना / 2-10-25

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