गाज़ा की धरती पर मातम छाया है,
गाज़ा की धरती पर मातम छाया है,
हर गली में दर्द का साया है।
एक माँ गोद में लाश उठाए रोती है,
उसकी चीख़ हर पत्थर को भी तोड़ती है।
मासूम आँखें अब बंद पड़ी हैं,
खेलने की चाहत कब्रों में गड़ी हैं।
तोपों की गड़गड़ाहट बच्चों को डराती है,
फिर भी माँ की ममता दुआएँ सुनाती है।
गाज़ा का आकाश आँसुओं से भीगा है,
पर उम्मीद का सूरज कहीं न कहीं अभी भी जिंदा है।