महागंग छंद विधान सउदाहरण
महागंग छंद (आंक जाति ) 18 मात्रा , 9-9
यति -दो दीर्घ और पदांत भी दो दीर्घ ( दो लघु को एक दीर्घ मानना #निषिद्ध)
चार पद , दो दो या चारों पद सम तुकांत
#छंद –
करके इशारे , मोहन बुलाते |
निकट तरु बैठे , बंशी बजाते ||
कहे जो राधा , धुन वह सुनाते |
मुदित मन दोनों ,स्वर को मिलाते ||
श्याम बिन राधा , लगती अधूरी |
रास बिन लीला , होती न पूरी ||
श्याम को खोजे , सदा दीवानी |
यमुना सुनाती , सबको कहानी ||
ग्वालिन दही को , थोड़ा चखाए |
श्रीकृष्ण लल्ला , आँगन नचाए ||
माखन बँटेगा , लालच दिखाए |
धन्य यह लीला , सबको सुहाए ||
सखी सब दौड़ीं , ग्वाल भी आते ||
रंग की होली , मिलकर मनाते ||
रंग राधा को , मोहन लगाते |
देवगण हर्षें , पुष्प बरसाते ||
लोक तज ब्रह्मा ,चल पड़ी गंगा |
वेग था भारी , रुप था अनंगा ||
जटा शिव आतीं , उसमें समातीं |
शिवा लट खोलें , तभी गति पातीं ||
सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़ म०प्र०
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#मुक्तक
बहुत हैं देखे , यहाँ तुम जैसे |
बोल यह खट्टे , सुनें जो ऐसे |
जान अभिमानी , उसे मत छोड़ो –
त्यागकर पूछो , हाल अब कैसे |
शपथ जो खाने , हर बार आता |
निज प्रशंसाएँ , सबको सुनाता |
मक्कार मानो , क्रिया भी यारो –
ज्यों पंक में हो , सूकर नहाता |
तोड़े भरोसा , फिर दे सफाई |
छोड़कर ऐसे , दूर रह भाई |
विश्वास धागे, जब कहीं टूटें-
रखो तब दूरी , अपनी भलाई |
आया अकेला , जोड़ ली माया |
चंदन लगाया , सजा ली काया |
सभी निज माना,कहीं कुछ छीना-
हाथ पर खाली , गमन में पाया |
बना है कोई , स्वयं जग शूरा |
दिखे पर पूरा , सबको अधूरा |
नहीं स्वीकारे , कमीं कुछ थोड़ी –
उठा मुख घूमें , बनकर लँगूरा |
सुभाष सिंघई
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#गीतिका
स्वर – स्ते , पदांत में
अभिमान देखो , जहाँ रिश्ते में |
प्रेम को डालो , वहाँ बस्ते में |
मिलते सयाने , कर चाटुकारी ,
माल सब चाहें , यहाँ सस्ते में |
कुछ नर हठीले , सदा अड़ जाते ,
मत रखो यारो , निजी दस्ते में |
सिरदर्द होते , लोग कुछ ज्ञानी ,
कर उठे बातें , बीच रस्ते में |
जहर भी डालें , अवसर न छोड़ें ,
स्वर्ण को खोजें , लोग जस्ते में |
सुभाष सिंघई
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#गीत
गा रहा ज्ञानी , निज का बखाना |
दूजे सब पापी , मारता ताना ||
ज्ञान की गंगा , गेह है मेरे |
पूछता ज्ञानी , हाल क्या तेरे ||
बुद्धि बल देखो , मेरा खजाना |
दूजे सब पापी , मारता ताना ||
संसार देखो , मुझे ही पूजे |
सामने जो भी, तुच्छ सब दूजे ||
मूर्ख सब प्राणी , बना मैं साना |
दूजे सब पापी , मारता ताना ||
कहता ‘सुभाषा’ , बोल सुन ढ़ोंगी |
सुन ले बाबा , बने हो पोंगी ||
गलत मैं मानू , हक को जमाना |
दूजे सब पापी , मारता ताना ||
सुभाष सिंघई
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