ये पलकें उठाओ अगर इल्म है तो।
ये पलकें उठाओ अगर इल्म है तो।
कि नज़रें मिलाओ अगर इल्म है तो।
मुहब्बत में क्या क्या नफ़ा और नुक़सां,
हमें भी बताओ अगर इल्म है तो।
ये रोना, तड़पना, घुटन, दर्द, आँसू,
सभी भूल जाओ अगर इल्म है तो।
हुनर दर्द पीने का सीखा कहाँ से?
हमें भी सिखाओ अगर इल्म है तो।
चलो ख़्वाब पूरे करें दोनों मिलके,
न आँसू बहाओ अगर इल्म है तो।
हो तन्हा कभी तो न मायूस होना,
ग़ज़ल गुनगुनाओ अगर इल्म है तो।
“परिंदे” से उड़ने का सीखो हुनर तुम,
चलो मुस्कुराओ अगर इल्म है तो।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊