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2 Oct 2025 · 1 min read

रोज मैं लिख रहा हूँ तुम्हारे लिए,

रोज मैं लिख रहा हूँ तुम्हारे लिए,
आज तुम भी लिखो कुछ हमारे लिए।

रूठ जाओ अगर तो मनाने तुम्हें,
चाँद द्वारे खड़ा हो सितारे लिए।

कर लो बुनियाद पुख़्ता समय रहते तुम,
क्यों खड़े हो अभी तक सहारे लिए।

हो गई हो ख़फा इस कदर हमसे तुम,
ज्यों नदी मुड़ गयी हो किनारे लिए।

आज भूखा अगर मर रहा है तो क्या…?
ज़िन्दगी भर तो उसने नज़ारे लिए।

पंकज शर्मा “परिंदा”🕊

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