दोहा पंचक. . . . अलि -पुष्प
दोहा पंचक. . . . अलि -पुष्प
सोच समझ कर पुष्प पर, अलि होना आसक्त ।
इसकी मीठी गंध पर, प्रेम न करना व्यक्त ।।
अलिकुल की गुंजार से, पुष्प हुए भयभीत ।
गंध चुराने आ गए, छलिया बन कर मीत ।।
मथुप चुराते पुष्प की , मादक मोहक गंध ।
मद में होकर चूर अलि ,अमर करे संबंध ।।
भौंरा आशिक पुष्प का, चाहे उसका संग ।
अंग -अंग पर छोड़ता, मद में डूबा रंग ।।
बाट हमेशा जोहता , पुष्प मधुप की नित्य ।
अच्छे लगते पुष्प को, प्रेम सुवासित कृत्य ।।
सुशील सरना / 30-9-25