ग़ज़ल
देख कर तुम हमें मुस्कुराया करो
प्यार की डोर को भी बढ़ाया करो
है ज़माने का डर इतना जो अब तुम्हें
तो ख्यालों में ही आया-जाया करो
जान हाथों ले घूमता हर गली
तुम कभी तो हमें आजमाया करो
हैं उठी हर ऩज़र बस तुम्हारी तरफ़
इन निगाहों से खुद को बचाया करो
आसरा तुमसे ही है हमें प्यार का
जां ज़िग़र सिर्फ हम पे लुटाया करो
दूर से हाल तुम पूछ लेते हो क्यों
रूबरू भी कभी पास आया करो
दिल -ए-बीमार को फिर सुधा हाल पे
छोड़ कर तुम कभी भी न जाया करो
डा सुनीता सिंह सुधा
वाराणसी ,15/9/2025
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