Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
29 Sep 2025 · 3 min read

अंतिम संस्कार की समस्या ( कहानी दूसरी क़िश्त )

अंतिम संस्कार की समस्या ( कहानी दूसरी क़िश्त )

अब तक– कृष्णा ने एक लाठी उसके सर पर ऐसा मारा कि वह पल भर में वहीं ढेर हो गया –इससे आगे–

इससे आगे—मिन्टों में ही अर्जुन के प्राण पखेरु उड़ गए। अब घर में तीन तीन लाशें पड़ी थी । साथ ही कृष्णा के प्रहार के कारण ही अर्जुन की मृत्यु हुई थी अत: उसे हत्या के अपराध में पोलिस पकड़ कर ले गई ।
मुहल्ले की सारी दुकानें बंद हो गईं । और तीनों शव यात्रा की तैयारी होने लगी । शव यात्रा भी देखने लायक थी । संभवत: इतनी भीड़ शहर वालों ने किसी भी शव यात्रा में आज तक नहीं देखी थी ।
अंत्येष्ठी का दायित्व कौन निभाएगा यह झंझट भी खत्म हो चुका था । तीनों मरने वालों को अग्नि रामलाल के सबसे छोटे बेटे सुदामा ने ही दिया ।
15 वें दिन घर में सुदामा के अलावा कोई रहने वाला नहीं बचा । तब सुदामा को अपना ही घर काटने दौड़ने लगा तो उसने निर्णय लिया कि मस्तूरी चला जाए। वहीं रहकर खेती भी की जाए और अपनी पढाई भी वहीं से किया जाय । वह जूना बिलासपुर के घर को ताला लगाकर मस्तूरी शिफ़्ट हो गया । कुछ दिनों में ही उसका मन मस्तूरी में रमने लगा । वहीं गांव वाले भी अपने बीच एक ब्राह्मण का सानिद्ध्य पाकर बेहद प्रस्न्न हुए। समय के साथ सुदामा भी छोटे मोटे पूजा पाठ का काम करने लगा ।

देखते ही देखते 15 वर्ष गुज़र गए । सुदामा की शादी हो गई । वह दो पुत्रियों का पिता बन गया ।
समय बीतते गया । उसका बड़ा भाई कृष्णा 15 साल की सज़ा पूरी करके वापस बिलासपुर आ गया और अपने बिलासपुर वाले घर में रहने लगा । कृष्णा को धर्म व संस्कृत का इतना अच्छा ज्ञान था कि उसके सामने कोई ज्ञानि पंडित भी टिकता नहीं था । कृष्णा के अनुसार जो व्यक्ति अपने आप को हिन्दू मानता है उसे कर्मकांड संबंधित सारी बातों का दिल से पालन करना चाहिए । धीरे धीरे कृष्णा एक बड़े पंडित के रूप में सारे प्रदेश में स्थापित हो गया । उसके हज़ारों अनुयायी बन गए।

सतसंगों व धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा कृष्णा जी का मुख़्य फ़ोकस था मृत्योपरान्त कर्मकांड था । धीरे धीरे पंडित कृष्णा अपना फ़ोकस गरूण पुराण पर करने लगे थे ।वे सारे बिलासपुर में गरुण पुराण वाले पंडित के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे । कृष्णा पंडित ने अपने छोटे भाई सुदामा को बता दिया था कि अगर मेरी मृत्यु हो जाए तो मेरी अंतिम क्रिया के अलावा सारे कर्मकांड को तुम अच्छे तरीके से निभाना । मेरी मौत के बाद मेरी अस्थी को इलाहाबाद जाकर विसर्जित करना , फिर गया जाकर मेरे नाम से पिंड दान जरूर करना ।

एक दिन कृष्णा जी की इच्छा हुई कि वह अपने भाई से मिलने सीपत जाए। अत: उन्होंने अपनी कार को खुद चलाते हुए सीपत को रवाना हो गए। शाम के 5 बजे होंगे । सात बजे वह सुदामा के घर में था । इधर उधर की बातें हुईं । बच्चों व सुदामा के परिवार का हालचाल पूछा इसके अलावा पारिवारिक हादसों पर भी बातें हुईं । रात दस बजे कृष्णा जी वापस बिलासपुर की रवाना हुए।
रस्ते में सिपत और मोपका के बीच का हिस्सा आबादी शून्य थी । वहां से गुज़रते समय कृष्णा जी की गाड़ी हिचकोले खाते हुई मोपका से10 किमी पहले एक जगह रुक गई । उन्होंने मोबाइल द्वारा किसी को बुलाने के बारे में सोचा तो उनके मोबाईल में टावर का सिग्नल ही नहीं था । उन्होंने पैदल चलकर पहले मोपका पहुंचने का निर्णय लिया । वे कार को लाक करके धीरे धीरे मोपका की ओर पैदल चलने लगे । 2 किमी चलने के बाद उन्हें किसी जानवर की आवाज़ सुनाई दी । वे मुश्क़िल से सौ कदम और चले होंगे कि शेरों का एक झुन्ड उनके सामने आकर खड़ा हो गया । वे इससे पहले कुछ कर पाते सभी शेरों ने उन पर हमला कर दिया और मिन्टों में उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

( क्रमशः-तीसरी किश्त अंतिम क़िश्त होगी )

Loading...