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28 Sep 2025 · 3 min read

आपदा के समय नागरिकों का कर्तव्य और स्वयंसेवकों की भूमिका – एक गहन विश्लेषण

प्रस्तावना

आपदा केवल प्राकृतिक घटनाओं तक सीमित नहीं होती। भूकंप, बाढ़, महामारी, अग्निकांड या औद्योगिक दुर्घटनाएँ – ये सभी समाज की नींव हिला देती हैं। ऐसे समय में प्रशासन, पुलिस, सेना और आपदा प्रबंधन बल (NDRF/SDRF) अपना कर्तव्य निभाते हैं, लेकिन उनके साथ-साथ सामान्य नागरिकों और स्वयंसेवकों की भूमिका भी उतनी ही अहम होती है।

मैंने अपनी सेवाओं के दौरान कई बार देखा है कि एक अनुशासित नागरिक और संवेदनशील स्वयंसेवक न केवल कई जिंदगियाँ बचा सकते हैं, बल्कि राहत कार्यों को तेज़ और प्रभावी भी बना सकते हैं। यही कारण है कि हम सभी को नागरिक कर्तव्य और स्वयंसेवक आचार संहिता को समझना चाहिए और उसका पालन करना चाहिए।

नागरिक का कर्तव्य (Citizen’s Duty in Disaster)

आपदा के समय नागरिक केवल “दर्शक” नहीं बने रह सकते। यह समय है अपने संयम, धैर्य और जिम्मेदारी को दिखाने का।

प्रमुख कर्तव्य

a) घबराएँ नहीं (Don’t Panic): अफरा-तफरी से स्थिति और बिगड़ सकती है। शांत रहना ही पहला कदम है।

b) अफवाह न फैलाएँ (Avoid Rumors): सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं को साझा करना राहत कार्यों में बाधा डाल सकता है।

c) प्रशासन को सहयोग दें (Support Administration): राहत टीमों को रास्ता देना, सही जानकारी देना और आदेशों का पालन करना।

d) स्वयं की सुरक्षा करें (Ensure Self Safety): अनावश्यक जोखिम न लें, सुरक्षित स्थान पर रहें।

e) दूसरों की मदद करें (Help Others): विशेषकर बच्चे, महिलाएँ, बुज़ुर्ग और दिव्यांगों की सहायता करना।

यही वास्तविक सक्रिय नागरिकता है – अपने और दूसरों के लिए जिम्मेदार होना।

स्वयंसेवकों का आचार संहिता (Code of Conduct for Disaster Volunteers)

स्वयंसेवक आपदा प्रबंधन का सबसे अहम हिस्सा हैं। लेकिन उनकी भूमिका तभी सार्थक होती है, जब वे अनुशासन और संवेदनशीलता के साथ काम करें।

क्या करना चाहिए (Do’s)

a) समय का पाबंद और अनुशासित रहें।

b) हेलमेट, मास्क, ग्लव्स जैसे Safety Gear पहनें।

c) पीड़ितों से आदरसूचक और संवेदनशील संवाद करें।

d) बच्चों, महिलाओं, बुज़ुर्गों और दिव्यांगों को प्राथमिकता दें।

e) टीमवर्क को बढ़ावा दें और वरिष्ठों के आदेशों का पालन करें।

क्या नहीं करना चाहिए (Don’ts)

a) अफवाह न फैलाएँ।

b) आत्म-प्रचार (Self-Promotion) से बचें।

e) अनुशासन न तोड़ें या लापरवाही न करें।

f) नशे में ड्यूटी बिल्कुल न करें।

g) पीड़ितों की वस्तुएँ या निजी सामान न छेड़ें।

याद रखें, “एक अनुशासित स्वयंसेवक हजारों जिंदगियाँ बचा सकता है।”

वास्तविक उदाहरण: किश्तवाड़ बाढ़ त्रासदी (2025)

14 अगस्त 2025 को जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चशोती गांव में भीषण बाढ़ आई। इस आपदा में 68 लोगों की मृत्यु हुई, 300 से अधिक घायल हुए और 36 लोग लापता हो गए।

मैंने स्वयं देखा कि स्थानीय नागरिक और स्वयंसेवक बिना किसी प्रचार या पुरस्कार की उम्मीद के, बस अपने कर्तव्य की भावना से, फंसे लोगों की मदद कर रहे थे।

कुछ जीवंत घटनाएँ:

अरीफ राशिद, एक स्थानीय एम्बुलेंस चालक, लगातार तीन दिनों तक 60 से अधिक श्रद्धालुओं को सुरक्षित निकालने में सफल रहे। उनका साहस और निस्वार्थ भाव सभी के लिए मिसाल बन गया।

शहनवाज (SDRF) ने मलबे से 13 महीने की बच्ची को सुरक्षित निकाला। उनका यह साहसिक कार्य हमें सिखाता है कि वास्तविक वीरता केवल फील्ड में नहीं, बल्कि धैर्य और संवेदनशीलता में भी होती है।

स्थानीय नागरिकों ने राहत कार्य में सक्रिय भाग लिया, मलबे से लोगों को निकालने और प्राथमिक चिकित्सा देने में सहयोग किया।

यह घटना हमें स्पष्ट संदेश देती है कि सही आचरण और अनुशासन ही राहत कार्य की सफलता की कुंजी हैं।

आपदा प्रबंधन और समाज की भूमिका

आपदा प्रबंधन केवल सरकार या प्रशासन का काम नहीं है। यह समाज की सामूहिक ज़िम्मेदारी है।
यदि हर नागरिक अपना कर्तव्य निभाए और हर स्वयंसेवक अनुशासन में रहे, तो किसी भी आपदा का असर काफी हद तक कम किया जा सकता है।

डिजिटल युग में, एक नागरिक की एक गलत पोस्ट अफवाह बन सकती है, और एक स्वयंसेवक की लापरवाही पूरे अभियान को प्रभावित कर सकती है। इसलिए अपनी जिम्मेदारी समझकर ही कदम उठाए।

निष्कर्ष

आपदा के समय नागरिक का संयम और स्वयंसेवक का अनुशासन ही असली “राहत” है।
जब हम डरने या अफवाह फैलाने के बजाय सहयोग करते हैं, तब हम न केवल अपने समाज को बचाते हैं बल्कि एक मजबूत राष्ट्र निर्माण में भी योगदान देते हैं।

लेखक के शब्दों में:

आपदा में वीरता केवल मैदान में नहीं दिखती, बल्कि धैर्य, अनुशासन और सहयोग से भी झलकती है। हर नागरिक और हर स्वयंसेवक यदि अपना कर्तव्य निभाए, तो कोई भी आपदा हमें तोड़ नहीं सकती।

– कृष्ण सिंह

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