बिना हथियार के डरा दिया हथियार बंद व्यवस्था को - का० शंकर गुहा नियोगी जी
हमें तुम्हारी शहादत की कसम है।
अमर शहीद शंकर गुहा नियोगी!
हम तुम्हारी शहादत की कसम खाते हैं कि अपनी कुर्बानी से जो रास्ता तुमने बनाया है,
उस पर हम सब मेहनतकश, जिंदगी की आखिरी साँस तक चलेंगे।
अपनी शहादत से, अपने खून से, जो पवित्र ज्योति तुमने जलायी है उसे हम बुझने नहीं देंगे।
जब भी, जहाँ भी जरूरत पड़ेगी, हम उस ज्योति को जलाये रखने के लिए अपने भी खून की आहुति देंगे,
ताकि छत्तीसगढ़ और हिन्दुस्तान एवं समस्त दुनिया के मेहनतकश किसान- मजदूर जब- जब आगे बढ़ेंगे तो उन्हें तुम्हारी शहादत की रोशनी से रास्ता दिखता रहे।
का० नियोगी जी लाल सलाम
बिना हथियार के डरा दिया हथियार बंद व्यवस्था को
नियोगी जी एक ऐसे जन नेता थे, जिन्हें लाखों लोग करीब से जानते थे। जो उन्हें जानता था, उन्हें अपना समझता था। वे एक सहकर्मी भी थे, नेता भी थे। गैर-बराबरी और अन्याय के खिलाफ लड़ रहे छोटे-बड़े समूहों के लिए नियोगी प्रेरणा के स्रोत रहे। तथाकथित ट्रेड यूनियनों के लिए वे सुधारवादी रहे। सरकार के लिए नक्सलवादी।
28 सितम्बर 1991 की सुबह उनको दिये गये ये सारे नाम बेमतलब हो गये। बस एक बात आखिरी साबित हुई , अन्याय पर टिकी हर व्यवस्या के लिए वे सबसे बड़े आतंक थे, आतंकवादी न होने के बावजूद।
*बड़ी अजीब बात है। जिसने कभी हिंसा में यकीन नहीं किया। जिसने कभी हथियार नहीं उठाये। जिसने कभी किसी को एक पत्थर तक नहीं मारा। जिसने किसी के लिए अपशब्दों तक का इस्तेमाल नहीं किया। जिसने कोई पूँजी जमा नहीं की। जिसने कभी किसी को डराया नहीं। डराना जिसकी जीवन शैली में शामिल नहीं था। जिसने अपने-आपको कभी किसी पर थोपा नहीं। जिसने कभी आखिरी सच होने का दावा नहीं किया। जुलूसों में, पदयात्राओं में जो कभी आगे-आगे नहीं चला, वैसा एक सीधा-सादा, सहज, आर-पार दिखने वाला इंसान इस व्यवस्था के लिए इतना बड़ा आतंक कैसे हो गया कि व्यवस्था के काले अदृश्य हाथों ने सोये हुए नियोगी को गोली मार कर शहीद बना दिया। जागने की प्रतीक्षा तक नहीं की। जैसे व्यवस्था के इन काले हाथों को इसका अहसास था कि जागे हुए नियोगी को मारा नहीं जा सकता है।
जब व्यवस्था आतंकित होती है तो ‘आतंक’ को खत्म कर देती है। बोथा सरकार कलम के हर सिपाही को सूली पर नहीं चढ़ाती है। बेंजामिन मोलाईस को चढ़ाती है। जिसकी कलम से डरती है, उसे ही सरकारें सूली पर चढ़ाया करती है। जिसके काम, जिसकी जीवन शैली, जिसके संकल्प, जिसकी तपस्या से यह व्यवस्था डरती है, उसे यह व्यवस्या कत्ल कर देती है। जाहिर है नियोगी की तपस्या और त्याग में, काम और काम के तरीके में, जीवन और जीवन शैली में यह ताकत थी कि बिना हथियार उठाये वे हथियारबंद व्यवस्था को डरा दिया।
कि० शहीद शंकर गुहा नियोगी जी तुम्हें लाल सलाम, लाल सलाम, लाल सलाम*