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28 Sep 2025 · 1 min read

चलो दरश कर आएं

झुकाकर शीश चरणों में,सफल जीवन बनाएं।
सजा दरबार अंबे का,चलो दरश कर आएं।।

दयालु मेरी मैया हैं ,सकल पीर हरती हैं।
घर की मिटाकर दरिद्रता ,भण्डारे भरती हैं।
जग में माता के जैसा,दूसरा नहीं दानी।
माँ जग जननी के जैसा,दूसरा न वरदानी।

माँ के चरणों में अपना,हम सब शीश झुकाएं।
सजा दरबार अंबे का,चलो दरश कर आएं।।

मातु दरबार की शोभा,सारे जग से न्यारी।
माता रानी की मूरत,लगती अतीव प्यारी।
समस्त दुनिया की सर्जक,जो हैं पालनहारी।
माता की महिमा गाती , समस्त दुनिया सारी।

बैठ शरण में माता की,हम सब ध्यान लगाएं।
सजा दरबार अंबे का, चलो दरश कर आएं।।

जलाकर ज्ञान का दीपक,उर का तम हरती हैं।
शुभ आशीष दे करके,रिक्त गोद भरती हैं।
हर मन की मनोकामना ,माँ पूर्ण करती हैं।
माँ अपने भक्त जनों का,सदा ख्याल रखती हैं।

कर जग जननी के दर्शन,सोए भाग जगाएं।
सजा दरबार अंबे का,चलो दरश कर आएं।।

मैया की महिमा पावन,गाता जग सारा है।
जग जननी कल्याणी का,अति पावन द्वारा है।
जो लेकर मनोकामना,माँ के दर आता है।
वो दर से भर के झोली, अपने घर जाता है।

माँ महिषासुर हननी की ,पावन महिमा गाएं।
सजा दरबार अंबे का, चलो दरश कर आएं।।

स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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