तेज की देवी : माँ कुष्मांडा
सृजन की पहली मुस्कान हो तुम,
प्रभा से भरी पहचान हो तुम।
चारों दिशाओं में गूंजे नाम तेरा,
अधरों पर बसा गुणगान हो तुम, माँ।।
सूरज की किरणों में ज्योति बनी,
अंधेरों में आशा की रेखा बनी।
जब जागे भक्तों में भावना भक्ति की,
हर हृदय की अभिलाषा बनी हो तुम।।
हँसकर किया तूने ब्रह्मांड निर्माण,
तेजस्विनी, अनुपम बल की खान।
‘कुष्मांडा’ कहें, ‘अम्बा’ भी जानें,
तुझसे सजी यह सृष्टि महान।।
कमलासन पर विराजी हे माँ,
अष्टभुजा में शस्त्रों की छाँव।
दानव दल का करती संहार,
भक्तों की रखवाली हर ठाँव।।
दूध-मालपुए का भोग लगा,
मन से निकले प्रेम का रस।
नवदुर्गा की चतुर्थ शक्ति तू,
शुभ प्रारंभ की तू ही आस।।
जो तज दे भय, सुमिरन करे तेरा,
जीवन में फिर ना बचे अंधेरा।
विघ्न विनाशिनी बनकर तू आओ,
माँ कुष्मांडा, मेरे मन में समाओ।।