वो पिता था जो मेरी खातिर....
दिनभर तपता सूरज में
रातों को जगराता करता था
वो पिता था जो मेरी खातिर
हर एक आफत से लड़ता था
जब जन्म लिया मैनें तो सबने
मां को बहुत सराहा था
9 महीने का वो सफर सभी नें
मां का कठिन बताया था
एक सफर पिता का भी था
मैं उनके सपनों में पलता था
वो पिता था जो मेरी खातिर
हर एक आफत से लड़ता था
जिसने थामी उंगली मेरी
राहों पर चलना सिखलाया
साइकिल को थाम कर छोड़ दिया
और खुद से संभलना सिखलाया
जो खुद सूखी रोटी खाकर
मेरी को घी से चुपड़ता था
वो पिता था जो मेरी खातिर
हर एक आफत से लड़ता था
जिनके कंधों पर बैठ ना जाने
कितने मेले देखे थे
जिनके जीवन ने मेरे कारण
कितने ही दुख झेले थे
जो कभी नहीं बोले मैं तुझको
दिला नहीं ये सकता हूं
जो कहते थे पलकों पे बिठा कर
तुझको अपनी रखता हूं
जो मेरे विफल प्रयासों में
एक नया संचार करता था
वो पिता था जो मेरी खातिर
हर एक आफत से लड़ता था
– पारस ‘मणि’