शांति का प्रतीक : माँ चंद्रघंटा
स्वर्णाभ आभा में लिपटी, दिव्य प्रभा की ज्योति हो तुम,
सिंहवाहिनी महाशक्ति, सकल ब्रह्मांड की स्रोतस्वरूप तुम।
मस्तक पर अर्धचंद्र की रेखा, सौंदर्य का अनुपम ज्योतिलोक,
चरणों में जिनके सुर नृत्य करें, वंदनीय चंद्रघंटा महाशक्ति घोटक।
करों में शस्त्र लिए हो आठ, नव चेतना की दीप-ज्योति तुम,
शत्रु संहारिणी रणचंडी हो, फिर भी ममतामयी छांव हो तुम।
घंटे की नाद से कांपे पाप, अधर्म थर्राए, क्रूरता गले लग जाए,
भक्तों के कण-कण में समा जाओ, माँ! जब प्रेम से कोई गाए।
तेरा स्वरूप मधुर भीषण, कोमलता में भी गर्जना हो तुम,
कभी बनीं करुणा की सरिता, कभी वज्रधारिणी महिमा छाई।
भवसागर की नौका है तुम्हारी, साधना की पतवार हो तुम,
त्रिलोकी में जिसकी चर्चा हो, ऐसी अलौकिक धार हो तुम।
माथे पे जो शोभित चंद्रतारा, चंद्रकलातीत रूप की छाया,
तेरे दर्शन से अंधेरा हट जाए, जीवन में खुशियां छा जाये।
सिंह की सवारी तू करती, भय की सारी सीमाएँ तोड़े रहती,
एक दृष्टि तेरी जब पढ़े हृदय, भीतर का अंधकार भी छोड़े।
नवरात्रि का तृतीय दिवस है, हो तेरे चरणों में अर्पित हो,
तू शक्ति, शांति, साहस की देवी, जीवन को कर दे पवित्र!
घंटानाद से जागृत कर दो, आत्मा की गूढ़ तरंगित कर दो,
माँ चंद्रघंटा,तुममें ही बसी है, सृष्टि की हर जीवित उमंग हो।
ओ माँ चन्द्रघटा ! चंद्रवदनी, करुणा की नंदनी,
तेरे नाम की सुगंध से महके जीवन की भावों की चंदनी।
तेरे चरणों में अर्पित कर दूँ, अपने मन की हर पीड़ा-व्यथा,
दे शक्ति ऐसी कि अडिग रहूँ मैं, चाहे जैसी भी हो राह मेरी।
जय माँ चंद्रघंटा! तेरी ध्यान धरू,
संकल्प हमारा रहे, भक्ति तुम्हारी रहे,
मैं कर दूँ अपने जीवन को समर्पित।