तप की देवी : माँ ब्रह्मचारिणी
धूप में तपती, जो छाया बन जाती है,
काँटों पर चलकर, मुस्कान बन जाती है।
त्याग, संयम, साधना की जो मिसाल है,
वो माँ ब्रह्मचारिणी, माँ का कमाल है।
सफेद वस्त्रों में लिपटी, शांति की धारा है,
मुख पर तेज, नयन में संसार सारा है।
मोह-माया त्याग, बनी शक्ति की सूरत,
भक्ति का दीपक, जोड़े हम सबकी मूरत।
कमंडल एक हाथ में, रुद्राक्ष दूजे हाथ,
मौन तपस्या में लीन, वाणी में उपदेश साथ।
कठिन व्रतों से पाया शिव को जिन्होंने,
ब्रह्मा भी शीश झुकाएँ, द्वार पर आके उनके।
हिमालय-पुत्री, संकल्प की रानी,
तप की प्रतिमा, ब्रह्मविद्या की ज्ञानी।
हज़ारों वर्षों वन में की कठोर साधना,
हर क्षण स्वयं को किया तप में अर्पणा।
न माँगी विलासिता, न डगमगाया मन,
धैर्य और निष्ठा में था अनोखा प्रण।
न शीत से हारी, न धूप से डर पाई,
माँ की तपश्चर्या, जग में मिसाल बन आई।
देवताओं ने जब देखा उनका तेज अपार,
बोले “यह कन्या नहीं, शक्ति का अवतार!”
स्वयं शिव भी उनके व्रत से हुए द्रवित,
सृष्टि के सारे नियम गए पल में परिवर्तित।
माँ ब्रह्मचारिणी सिखलातीं यही हैं हमें,
साधना से ही सिद्धियाँ मिलती हैं जग में।
जो धैर्य-भक्ति में रमते हैं हर क्षण,
दुःख नहीं टिकते उनके जीवन पथ पर एक क्षण।
नवरात्र की ये दूसरी संध्या पावन है,
माँ की पूजा से मिलता ज्ञान और साधन है।
जो श्रद्धा से करें पूजा – अर्चना इनकी,
सफल हों हर यज्ञ, हर कामना उनकी।
हे माँ ब्रह्मचारिणी! दो वो शक्ति हमें,
जो दुःख में भी न डिगे भक्ति हमारे।
विश्वास बना रहे, हर पथ आसान हो,
तप से जीवन का हर क्षण महान हो।