दो-दो गोदी, एक थी चड्ढी
ग़ज़ल
आसमान से गिरी रे हड्डी
बच्च कबड्डी बच्च कबड्डी
गंग में थूके जमन में मूते
मांएं घिस-घिस धोएं चड्ढी
इसे टीपकर, उसे चाटकर
हुई जवां नोटों की गड्डी
चचा-ताऊ सब लूट ले गए
ताली-सीटी भरें फिसड्डी
आधी इसकी, आधी उसकी
गिरी कटोरे में जो हड्डी
इधर ढको तो उधर खुले रे
दो-दो गोदी, एक थी चड्ढी
-संजय ग्रोवर