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22 Sep 2025 · 1 min read

दो-दो गोदी, एक थी चड्ढी

ग़ज़ल

आसमान से गिरी रे हड्डी
बच्च कबड्डी बच्च कबड्डी

गंग में थूके जमन में मूते
मांएं घिस-घिस धोएं चड्ढी

इसे टीपकर, उसे चाटकर
हुई जवां नोटों की गड्डी

चचा-ताऊ सब लूट ले गए
ताली-सीटी भरें फिसड्डी

आधी इसकी, आधी उसकी
गिरी कटोरे में जो हड्डी

इधर ढको तो उधर खुले रे
दो-दो गोदी, एक थी चड्ढी

-संजय ग्रोवर

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