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19 Sep 2025 · 7 min read

दोहा - कहें सुधीर कविराय

दोहा – कहें सुधीर कविराय
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धार्मिक
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चित्रगुप्त जी कीजिए, अपने जन का ध्यान।
भूल चूक को माफ कर, भरो सभी में ज्ञान।।१६,१६

गणपति जी को नमन है, दिवस आज बुधवार।
प्रथम पूज्य रक्षा करो, मात-पिता संसार ।।

राम कृपा से हम सभी, मिल बैठे फिर आज।
जिनकी महिमा है बड़ी, राखें सबकी लाज।।

आज धरा पर क्यों नहीं, लेते प्रभु अवतार।
कभी आप भी सोचिए, करिए मनन विचार।।
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विविध
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कहते हैं कुछ लोग जो, अपने मन की बात।
उड़ा रहे उपहास हम, संग करें प्रतिघात।।

कलियुग के इस दौर में, दिखे रंग बदरंग।
दुविधा किसी को है कहाँ, होते चहुँदिश जंग।।

लेकर कावंड चल दिए, चुपके से यमराज।
चकित देख शिव जी हुए, कहाँ गिरेगा गाज।।

दुर्घटना ऐसी हुई, हुए लोग सब दंग।
ईश्वर की इच्छा प्रबल,या कोई संयोग।।

सठियाये हैं ट्रंप जी, भूल गए सब ज्ञान।
जैसे को तैसा मिले, नहीं रहे क्या जान।।

सर्व शक्तियाँ मौन क्यों, हम सब करें विचार।
इसके पीछे राज का, कुछ तो है आधार।।

कहते जो हैं संतजन, हम कब समझें सार।
हम मानव जन सोचते, लाद रहे हैं भार।।

सुबह शाम के खेल में, धोखा देते लोग।
भोलेपन से कह रहे, मान इसे संयोग।।
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संविधान
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संविधान की ले शपथ, उड़ा रहे उपहास।
ऐसा उनको लग रहा, जनता खाती घास।।

संविधान की आड़ में, करते वे हुड़दंग।
जनता ने दिखला दिया, जिनका असली रंग।।

गणपति जी अवतार लो, मोदक खाना भूल।
लेकर अपने हाथ में, आओ लेकर शूल।।
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यमराज
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डरते हैं यमराज जी, धरा मनुज से आज।
चुपके चुपके कर रहे, अपने पूरे काज।।

सोच रहे यमराज जी, ले लूँ नव अवतार।
जितने पापी हैं धरा, बन उनका सरदार।।
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स्वतंत्रता दिवस/आजादी
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जात-पात के दंश का, घाव झेलता देश।
नेता जी फैला रहे, सबसे बड़ा कलेश।।

आजादी के साथ ही, जन्मी थी नव आस।
शांत चित्त हो सोचिए, कितना हुआ विकास।।

आजादी से हम भले, हों प्रसन्न भरपूर।
इतने वर्षों बाद भी, आरक्षण नासूर।।

दिन स्वतंत्रता संग में, कृष्ण जन्म भी आज।
चहुँदिश छाया हर्ष है, रंग बिरंगा साज।।
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रक्षाबंधन
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प्रभु से मेरी कामना, सदा मिले तव साथ।
रहे हस्त मम शीश पर, बहना तेरा हाथ।।
कलाइयाँ सूनी दिखें, जाने कितनी आज।
भीतर से मन रो रहा, लगे अधूरा राज।।

सूना- सूना लग रहा, जैसे ये संसार।
भगिनी भ्राता के बिना, लगता घर परिवार।।

कच्चे धागे दे रहे, साफ – साफ संदेश।
रिश्ते पावन हों सदा, तनिक नहीं हो क्लेश।।
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मर्कट दोहा (14 लघु,17 गुरु)
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सखियाँ कजरी गा रही, छाया है उल्लास।
हँसी ठिठोली भी करे, संग हास परिहास।।
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मंण्डूक दोहा (12 लघु 18 गुरु)
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आप नहीं क्यों मानते, जो है सत्य विचार।
कहाँ हमें भी याद है, अपना जो आधार।।

मानव खोता जा रहा, मर्यादा का भाव।
अपने ही अब दे रहे, अपनों को ही घाव।।

भोले बाबा से अड़े, आज मित्र यमराज।
मम का भी उद्धार हो, संग सभी के आज।।
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मण्डूक दोहा (12 लघु 18गुरु) – कजरी
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कजरी गाते आज हैं, सावन का है रंग।
खुशहाली के बीच में, नहीं घोलिए रंग।।

कजरी खोती जा रही, ऊँचा हुआ समाज।
घुसी हमारी सोच में, आया पश्चिम राज।।
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मण्डूक दोहा (12 लघु 18गुरु) -बात
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जो भी अपने बड़ों की, सुनता है हर बात।
जीवन में आती नहीं, कोई काली रात।।

बात नहीं क्यों मानते, बच्चे भी अब आज।
पर दोषी वो भी नहीं, ऐसा देख समाज।।

बात बनाने से नहीं, बनती कोई बात।
आप रुलाते क्यों हमें, सत्य आपको ज्ञात।।

बात-बात में हो गया, आपस में ही द्वंद्व।
नाहक दोनों ने किया, बोलचाल भी बंद।।

मीठी-मीठी बात वो, करता है दिन रात।
उतनी मीठी है नहीं, उसकी जो सौगात।।

बड़ी अनोखी बात है, जो भी कहते आप।
राम-नाम से दूर हो, यही बड़ा है पाप।।
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मण्डूक दोहा (12 लघु 18गुरु) -सुजान
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बड़े सयाने हो गए, सभी लोग ही आज।
छिपा स्वार्थ का भाव है, इसके पीछे राज।।

बड़े सयाने लोग जो, वही खा रहे चोट।
जो लगते बेकार हैं, मिलते उन्हीं को वोट।।

इतना चतुर सुजान भी, बनो नहीं तो ठीक।
दीवारों की ओट से, बातें होती लीक।।

पत्नी मेरी मानती, खुद को बड़ा सुजान।
बड़े गर्व से वो मुझे, कहती तू अज्ञान।।

जीवन का विज्ञान है, रखिए धैर्य सुजान।
गुमनामी के बाद भी, पाते हैं सम्मान।।

आरोपों की आड़ में, संसद का अपमान।
लोकतंत्र का घट रहा, मानो मित्रों शान।।
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मण्डूक दोहा (12 लघु 18गुरु) -रक्षाबंधन
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भ्राता- भगिनी भेंट का, मातु पिता में हर्ष।
खुशियों का ये पल सदा, देता है उत्कर्ष।।

खुशियों की सौगात ले, आता राखी पर्व।
अंतस इसके है छिपा, भ्राता भगिनी गर्व।।

राखी का संदेश है, प्रेम प्यार ही रीति।
इससे सुंदर है नहीं, अद्भुत कोई नीति।।

भले दूर दोनों रहें, नहीं मानते फ़र्क।
दोनों को लगता सदा, राखी मीठा अर्क।।

माथे पर टीका करे, राखी बाँधे हाथ।
संग चाहती है बहन, सदा भ्रात का साथ।।
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मर्कट दोहा (14 लघु 17 गुरु)-दिनकर
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दिनकर का संदेश है, रखो समय का ध्यान।
लापरवाही आपकी, रोकेगी सम्मान।।

रोज समय से आकर हमें, देते हैं संदेश।
भानु मोल जो जानते, वही बड़े ज्ञानेश।।

ठंडी में मोहक लगे, गर्मी में जस आग।
दिनकर जी आते सुबह, संध्या जाते भाग।।

ऊर्जा का सबसे बड़ा, भानु विश्व भंडार।
जन जीवन का है यही, मुख्य प्राण आधार।।
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मर्कट दोहा (14 लघु, 17 गुरु) – देश
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आजादी के पर्व का, अद्भुत है उल्लास।
लिखता भारत देश है, नित्य एक इतिहास।।

सीमा पर फौजी खड़े, अपनी सीना तान।
हिंदुस्तानी कर रहे, सेना पर अभिमान।।

बड़े गर्व से विश्व में, होता गौरव गान।
बुद्धिहीन कुछ लोग जो, बाँट रहे हैं ज्ञान।।

आज समूचा विश्व ही, करता है सम्मान।
विपदा आती जब कहीं , लेता भारत संज्ञान।।

छोटे – मोटे लक्ष्य पर, चले नहीं अब देश।
ऊँचा लेता लक्ष्य ले, करता कर्म विशेष।।
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मर्कट दोहा (14 लघु, 17 गुरु)-प्रेरणा
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मिली प्रेरणा आप से, जागा नव विश्वास।
ऐसा मुझको लग रहा, मैं हूँ सबसे खास।।

औरों का संबल बनो, दो खुशियाँ सौगात।
निज उत्तम सिद्धांत से, बड़ी कौन सी बात।।

नहीं किसी की राह में, रोड़ा बनिए आप।
जान बूझकर क्यों भला, करना क्यों है पाप।।

छोटी-छोटी बात का, तिल का बने पहाड़।
कुछ खुरपेंची हैं यहाँ, रहते सीना फाड़।।
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सखियाँ कजरी गा रही, छाया है उल्लास।
हँसी ठिठोली भी करे, संग हास परिहास।।
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आया यह कैसा समय, जिसका अद्भुत रंग।
जिसे समझ आता नही, नाहक होता तंग।।

नाहक नहीं सताइए, प्रभु का रखिए ध्यान।
कौन मिटा पाया भला, लिखता वही विधान।।
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क्रम दोहा-(16 लघु 16गुरु) – अवतार
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कृष्ण धरा पर आप तो, फिर ले लो अवतार।
आकर देखो स्वयं ही, पीड़ित हैं संसार।।

कुछ पाखंडी खुद कहें, लिया धरा अवतार।
जो आयेगा शरण में, होगा भव से पार ।।

सोच रहे हैं कृष्ण जी, लेना कब अवतार।
सही समय आया नहीं, नाहक लूँ क्यों भार।।

हाथ जोड़ यमराज जी, कहें प्रभो से बात।
धरती पर मानव करे, कुंठा में उत्पात।।

अवतारी हमसे बड़ा, कौन धरा पर आज।
स्वार्थ सिद्ध के खेल में, अपना तो है राज।।

अपने गुरु को मानिए, ईश्वर का अवतार।
सीख सदा देते हमें, जो जीवन का सार।।

जिनके जीवन का सदा, परमारथ का ध्येय।
चाह हमारी आपकी, दें अवतारी श्रेय।।

सोच रहे यमराज जी, मैं भी लूँ अवतार।
जो भी पापी हैं धरा, बन उनका सरदार।।
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करभ दोहा (16 लघु 16गुरु)-संसद
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माननीय हैं कर रहे, संसद में हुड़दंग।
मर्यादा फिर भी नहीं, होती इनकी भंग।।

संसद के हर काम में, डाल रहे अवरोध।
उनको अब होता नहीं, मर्यादा का बोध।।

काम काज होता नहीं, संसद फिर नाकाम।
देने से फिर क्या भला, नाहक इनको दाम।।

संसद में अध्यक्ष जी, दिखते हैं लाचार।
माननीय उनसे नहीं, करें प्रेम व्यवहार।।

संसद में संग्राम से , हम सब हैं हैरान ।
लोकतंत्र मंदिर बना, जस जंगी मैदान।।

संसद जिनको भेजती, जनता देकर वोट।
पछताती है आज वो, ढ़ूँढ़ रही है खोट।।

काम नहीं तब दाम क्यों, बड़ा प्रश्न है आज।
संसद के कानून का, उचित नहीं है राज।।

आरोपों की आड़ में, संसद का अपमान।
लोकतंत्र के नाम पर, धूल धूसरित शान।।

माननीय जी भी करें, थोड़ा सोच विचार।
शांत चित्त चिंतन करें, करते जो व्यवहार।।

मुद्दा खोता जा रहा, संसद में हर बार।
जनता हित में सोचता , करता कौन विचार।।
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करभ दोहा (16 लघु 16गुरु)-मानस
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मानस पावन ग्रंथ है, देते सब हैं मान।
जिससे मिलता है हमें, ज्ञान और विज्ञान।।

तुलसी बाबा ने दिया, जग उत्तम आधार।
जन मानस भी मानता, पावन जीवन सार।।

राम कथा विस्तार से, कहते तुलसी दास।
मानस जन विश्वास का, बना हुआ है आस।।

रामचरित में राम की, महिमा का है सार।
शब्द-शब्द देता हमें, राम कृपा अधिकार।।

मानस का पाठन करे, जो भी प्राणी नित्य।
उसके पल-पल का सदा, बना रहे औचित्य।।
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करभ दोहा (16 लघु 16गुरु)-रामायण
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रामायण में राम का, होता है गुणगान।
सबसे ज्यादा है मगन, बजरंगी हनुमान।।

दोहा चौपाई सहित, छंद सोरठा सार।
पढ़ता सुनता धारता, तर जाता भव पार।।

शब्द-शब्द में ब्रह्म हैं, रामचरित का सार।
मंजिल मिलती है उसे, राम बनें आधार।।

पिता वचन की पालना, मर्यादा का मोल।
जन मानस को सीख दे, दुविधा बंधन खोल।।

तुलसी बाबा ने रचा, राम भक्ति में डूब।
राम कृपा के पात्र बन, यश पाते अति खूब।।

जलता रावण आज भी, देख लीजिए आप।
फिर क्यों बढ़ता जा रहा, वसुंधरा में पाप।।
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करभ दोहा (१६ लघु १६ गुरु)
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अपनापन की आड़ में, बढ़ता स्वारथ भाव।
मीठी वाणी बोलकर, देते गहरे‌ घाव।।

वोट चोर चिल्ला रहे, गला फाड़ कुछ लोग।
बने हुए जो संत हैं, कल तक जो थे रोग।।

हिंसक मानव हो रहा, चिंता की है बात।
कौन सुरक्षित आज है, दिन हो या फिर रात।।

चित्रगुप्त जी कीजिए, अपने जन का ध्यान।
भूल चूक को माफ कर, भरो सभी में ज्ञान।।

प्रिय मेरे यमराज हैं, सुनो लगा कर ध्यान।
राज नहीं कोई बड़ा, मानो मत विज्ञान।।

मात-पिता को मानिए, धरती के भगवान।
मूरख वे सब लोग हैं, जो इससे अंजान।।

संविधान का उड़ रहा, आज बड़ा उपहास।
फिर भी लोगों का अभी, बना हुआ विश्वास।।

संविधान भी शर्म से, शर्मिंदा है आज।
पर खुश उतनी साथ में, दूर है इनसे राज।।
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करभ दोहा (१६ लग,१६ गुरु)- हरतालिका तीज
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तीज पर्व हरतालिका, प्यारा है त्योहार।
सभी सुहागिन कर रही, शिव गौरी मनुहार।।

निर्जल व्रत उपवास का, हरतालिका विधान।
शिव गौरी से चाहतीं, सदा सुहाग का मान।।
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आपस में दुश्मन बनें, जिनके कारण यार।
उनको देखा खेलते, बिना किसी तकरार।।

आओ सब मिलकर करें, ऐसा कोई काम।
जिससे हम सबका बढ़े, मान और आराम।।
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सुधीर श्रीवास्तव

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