ये आपदा की मार ,
फिर हो गई एक बार,
आपदा की मार,
कुछ घर टूटे,
कुछ हुए जमीं दोज,
कुछ मे आई दरार,
फिर हो गई एक बार आपदा की मार,
सडकों का है बुरा हाल,
नहरें हो गई खस्ता हाल,
पानी नहीं मिल रहा पीने को,
पेयजल योजनाएं पहुँच गई पाताल,
खेत खलियानों मे नाले बह रहे,
खराब हो गई फसलों का है मलाल,
फिर हो गई एक बार आपदा की मार,
इतने मे ही निपट जाते,
तो खैर मनाते,
पता चल रहा है,
पास के गांव मे,
मौत ने मचाया है बबाल,
पता ही नहीं चल पाया,
कितनों पर मौत बनकर टूटा है काल,
राहत के लिए आए है कुछ,
लेकर तेल नमक चावल, आटा दाल
बस यही रह गई है अपनी कीमत,
बन गये जो हम फुरसे हाल,
फिर हो गई एक बार आपदा की मार,
राहत क्या यह तो आफत है,
छीना झपटी की चाहत है,
प्रशासन ने लोगों का ध्यान बांट दिया,
क्या चाहा था,
क्या मिल रहा, खडी हो गई,
एक नयी रार,
उसे क्यों मिला,
मुझे क्यों नहीं,
कष्ट मे तो हैं सभी,
अब उलझे हैं,
गुत्थी सुलझाने मे,
क्या बला आ पडी,
जाने अनजाने मे,
चाहत तो थी,
व्यवस्था सुधरे,
बिजली पानी बददस्तूर मिले,
घर छीन गये हैं जिन जिन के,
उन्हें नये घरों की राहत मिले,
खेत खलियान बह गये जिनके,
उन्हें उसकी ऐवज मे खेती की मदद मिले,
सडको को बहाल करते,
नहरों की सम्भाल करते,
पर खेल कर गये,
पांच किलो आटा पांच किलो चावल,
एक किलो दाल, कुछ मिर्च मसाला,
और एक बोतल देकर तेल,
और ध्यान भटका कर कर गये खेल,
हम ताकते रह गये,
वह बना गये अपना मुरीद,
देकर मुठी भर अनाज,
गये वो कुछ को खरीद,
हम थक गये समझाते समझाते यार,
लो फिर हो गई आपदा की मार ll