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16 Sep 2025 · 1 min read

#हिंदी_ग़ज़ल

#हिंदी_ग़ज़ल
■ भाग्य में अंकित अगर वनवास है।।
【प्रणय प्रभात】

प्राप्त में पर्याप्त का विश्वास है।
अब अभावों का नहीं आभास है।।

हम मुनासिब हैं नए इस दौर में।
हम पे हावी भूख है ना प्यास है।।

हमको अच्छे दिन से क्या लेना हुजूर!
रतजगों का बस हमें अभ्यास है।।

मंथरा को क्यूं कुटिल कपटी कहें?
भाग्य में अंकित अगर वनवास है।।

मानवोचित कर्म ही यदि धर्म हो।
जो गृहस्थी है वही सन्यास है।।

हसरतों का दम निकल जाए अगर।
सोच लेना उम्र भर उपवास है।।

हर ज़माने का है ये उल्टा चलन।
जो है जितना दूर उतना पास है।।

हम भले हमसे भली ये झोंपड़ी।
जिसमें कोई आम है ना ख़ास है।।

सच कहें तो वो हमें भाने लगा।
जो जगत के वास्ते संत्रास है।।

ठीक है शाहों की शाही दास्तां।
फक्कड़ों का भी अलग इतिहास है।।

कल असर होगा हमारी बात का।
आज बेशक़ मानिए बकवास है।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
-सम्पादक-
●न्यूज़&व्यूज़●
(मध्य-प्रदेश)

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