पानी पर तैरती चोटियां।
पानी पर तैरती चोटियां।
कहते हैं मनुष्य को बचपन की घटनाएं, तीन चार साल की अवस्था के बाद ही याद रहती है। बात काफी हद तक सही भी है क्योंकि मैं भी जब अपने बचपन में झांकता हूॅं तो स्कूल में प्रवेश के समय की और पढ़ाई के दौरान घटी कुछ घटनाएं ही याद आती हैं।
लेकिन यह भी सत्य है कि अत्यंत छोटी अवस्था में घटी एक दो घटनाएं मुझे अब भी याद हैं।
उस समय मेरी आयु बमुश्किल दो वर्ष की होगी। हमारे मौसाजी इलाहाबाद बैंक में शाखा प्रबंधक थे, और उनका स्थानांतरण कलकत्ता हो गया था। उसी समय में हम सपरिवार कलकत्ता घूमने गये थे। हमारे पिताजी, माताजी, मेरे से तीन वर्ष बड़ी हमारी बहन और दो वर्ष का मैं। कलकत्ता यात्रा की सिर्फ दो यादें मेरे स्मृति पटल पर अंकित हैं। एक तो वहां हम पिताजी की गोद में कलकत्ता की सड़कों पर घूमने निकले थे, वहीं सामने से ट्राम आयी और हमारे पिताजी ने हाथ दिखाने को कहा, हमने हाथ उठाया और ट्राम रुक गयी और हम सभी ट्राम में चढ़ गये। वह दृश्य स्मृति पटल पर अब तक अंकित है।
दूसरी घटना कुछ इस प्रकार है कि हमारा व मौसाजी का परिवार हुगली नदी में नहाने के लिए गये थे। हुगली नदी का वह मटमैला रंग व किनारे की सीढ़ियां अभी तक याद हैं। दूसरी सीढ़ी पर ही हम बच्चे नहा रहे थे, बच्चों में मैं ही सबसे छोटा था। मुझसे चार साल बड़े मौसेरे भाई थे, उनसे भी बड़ी मौसेरी बहन थी, मेरे से तीन वर्ष बड़ी मेरी बहन थीं। हम सभी बच्चे थोड़े थोड़े पानी में ही नहा रहे थे, बल्कि मैं तो किनारे पर खड़ा देख रहा था। तभी नहाते नहाते मेरी बहन का पैर फिसला और वह अगली सीढ़ी पर गिर गयीं। मौसेरे भाई व बहन ने एकदम शोर मचाया, पापा ऊषा डूब गयी, ऊषा डूब गयी। हमारे मौसाजी तौलिया लपेटे कपड़े पहन रहे थे। उस समय केवल पानी पर तैरती दो चोटियां दिखाई दे रहीं थीं।
मौसाजी तुरंत दौड़े और चोटियां पकड़कर ही खींच लिया और जीजी तुरंत पानी से ऊपर खिंच आयीं। अगर थोड़ी भी देर हो जाती तो वह पानी में बह जातीं क्योंकि हुगली में बहाव बहुत तेज था। उस समय घटना की गंभीरता का हमारे बाल मन में कोई अंदाजा नहीं था लेकिन पानी पर तैरती वह दो चोटियां, हमारे मौसेरे भाई बहन का चिल्लाना, मौसाजी का चोटियां पकड़कर खींचना और पानी में से जीजी का बाहर प्रकट होना अभी तक याद है।
आज भी जब वह घटना याद आती है तो घटना की गंभीरता सोचकर मन सिहर उठता है।
सच में जीवन और मृत्यु के बीच क्षणभर का ही फर्क है। और यह भी सच है कि जाको राखे साइयां मार सके ना कोय।
श्रीकृष्ण इस, मुरादाबाद।