फिरकी
दस में से बात न मानी एक
तो किसको मानें कितना नेक
कल भांति अश्व की दौड़ सका
अब क्या दोगे जब लकड़ी टेक
तुम फँसे समाजी फिरकी में
जो कपटी कुटिल नंबरी एक
बस तीन दिनों तक याद रखे
दौने पत्तल व्यंजन प्रत्येक
भर भर गगरी ले जाते लोग
जल को तरसेगी नदिया लेक