बादल की पीड़ा
फटते फटते बादल बोला।
क्यों विपदा में तन मन डोला।।
मेरी भी है अजब कहानी।
घुमड़ घुमड़ आँखों में पानी।।
पूछो मुझसे क्या है बीती ।
कोइ न जाने राज अनीति।।
फट जाता है तभी कलेजा।
जब भी टूटे कांच सहेजा ।।
मैं पागल हूं, धरती प्यासी।
सूखी आँखें, घोर उदासी।।
तूफानों में सबकी नैया।
टूटे पर्वत, कौन खिवैया।।
वनवासी है मन का राजा।
अवध न कहवे आ जा आ जा।।
बस इतनी सी राम कहानी।
सजल नयन है, पीर पुरानी।।
सूर्यकांत