प्रतीक (लघु रचना ) .....
प्रतीक (लघु रचना ) …..
मेरे अधरों पर
तूने अपने अधर स्पर्श से
जो मौन शब्द छोड़े थे
सोचा था
वो
ज़ह्न की गीली मिट्टी में गिरकर
अमर गंध बन जाएंगे
क्या पता था
वो स्पर्श तो मात्र
भावनाओं की आंधी थे
जो अन्तःस्थल में
एक घुटन का
प्रतीक
बन कर रह गए
हसीन स्वप्न
दर्दीला यथार्थ
बन कर रह गए
सदियों के लिए
सुशील सरना/