मेरी फितरत मेरा आईना जानता है
वो मेरी ख़ामोशी को देखना जानता है
मेरी फ़ितरत मेरा आईना जानता है l
हाल ए दिल बता तो दूँ मगर किस से कहूं
कोई मिला नहीं जो पूछना जानता है l
पेशानी पे गमों की सिलवटे तो है मगर
ये दिल हँस कर गुजरना जानता है l
नादानियाँ करने की इक उम्र है जनाब
मगर कौन भला उम्र भूलना जानता है l
के जिन्दगी से भी कोई शिकायत नहीं
कोई मेरी तहरीर को समझना जानता है l
मेरी महफ़िल मे दुश्मन का एहतराम है
फौजी,दुश्मन को दोस्त मे बदलना जानता है l
—–फौजी मुंडे सोहनलाल मुंडे