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27 Aug 2025 · 1 min read

होके मायूस ना यूं शाम की तरह ढलिए

होके मायूस ना यूं शाम की तरह ढलिए
जीवन हर रोज जंग है, इसे जारी रखिये
खरगोश तो रूक गया मंजिल से पहले ही
तुम कछुआ की मानिंद धीरे धीरे चलते रहिए
…..✍️ अरविंद कुमार गिरि

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